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इस दुनिया में बहुत कम ही लोग होते है जो दूसरे के लिए अपना सारा जीवन उनकी सेवा में लगा देते है ,लेकिन जिनकी बात अज हम करने जा रहे है वो किसी मसीहा से कम नही ,और यही देश के और लोगो के असली नायक होते है ,जो असल जिन्दगी में किसी मसीहा की तरह काम करते है ,इस दुनिया की चमक दमक ,सत्ता के मोह और मिडिया से कोसो दूर सरथ बाबू ,आंध्रप्रदेश के अपने शहर में इनका सम्मान किसी महापुरुष से कम नही
यह कहानी कुछ दिनों पहले साऊथ सेन्ट्रल रेलवे में क्लर्क का कम करने वाले सरथ बाबू की ,उनकी पोस्टिंग आंध्रप्रदेश के नेल्लोर रेलवे स्टेशन पर थी ,उसी स्टेशन पर रोजाना भीख मांगते हुए बच्चो को देखते और उन बच्चो के जीवन और अँधेरे में डूबे उनके भविष्य को देख बहुत ही निराश होते ,फिर उन्होंने कुछ पैसे इकठ्ठा कर 1994 में एक छोटा सा आश्रम खोला और भीख मांगने वाले और चोरी करने वाले बच्चो को आश्रम ले जाने लगे
सरथ बाबू बच्चो के लिए खाने कपड़े और साथ ही उनको शिक्षा देने की भी व्यवस्था की ,धीरे धीरे बच्चो की गिनती बढने लगी लेकिन साफ़ नीयत होने के कारण लोगो ने भी उन्ही मदद करने के लिए आगे आये ,बच्चे उनको ख़ुशी के पापा मान बैठे थे और उनका नाम डैडी रख दिया था ,सभी उनको इसी नाम से पुकारने लगे थे
आज इस आश्रम के नौ बच्चे बीटेक से इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे है ,एक साइंटिस्ट बन चुका है और एक भौतिक विज्ञान का लेक्चरर है ,कुछ बच्चे सरकारी नौकरी में है
गाँव वालो ने सरथ बाबू की खुलकर मदद की, आश्रम के लिए गाँव वालो ने पहले थोड़ी सी जमीन दी लेकिन बाद में सरथ का बच्चो के प्रति प्रेम देखकर चार एकड़ जमीन दान कर दी ,सरथ ने रेलवे के अधिकारियो का भी शुक्रिया अदा किया जिन्होंने इस प्रयास में उनकी पूरी मदद की
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