महाराणा प्रताप ने इस गुफा में खायी थी घास की रोटियां ……

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राजस्थान की भूमि हमेशा से ही महापुरुषों और वीर योद्धाओं की भूमि रही है यह धरती सदैव से ही अपने वीर सपूतों पर अभिमान करती रही है उन्हीं वीरों में से एक नाम महाराणा प्रताप का था हम आज आपको उस गुफा के बारे में बता रहे हैं जहां अकबर को धूल चटाने वाले वीर यौद्धा महाराणा प्रताप ने घास की रोटियां खाकर कुछ दिन व्यतीत किये थे यह वो प्रतापी विरासत है जिसे महाराणा प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था हम बात कर रहे हैं मेवाड़ की विरासतों में शुमार मायरा की गुफा के बारे में प्रकृति ने इस दोहरी कंदरा को कुछ इस तरह गढ़ा है जैसे शरीर में नसें इस गुफा में प्रवेश करने के लिए तीन रास्ते हैं जो किसी भूल-भुलैया से कम नहीं है इसकी खासियत यह भी कि बाहर से देखने में इसके रास्ते का द्वार किसी पत्थर के टीले सा दिखाई देता है लेकिन जैसे जैसे हम अन्दर जाते हैं  रास्ता भी निकलता जाता है यही कारण है कि यह अभी तक हर तरह से सुरक्षित है यही एक प्रमुख कारण था की महाराणा प्रताप ने इसे अपना शास्त्रागार बनाया था वास्तव में जब महाराणा प्रताप का जन्म हुआ उस समय दिल्ली पर सम्राट अकबर का शासन था वह सभी राजा महाराजाओं को अपने अधीन करके मुग़ल साम्राज्य स्थापित करना चाहता था वहीं दूसरी ओर मेवाड़ की भूमि को मुग़ल अधिपत्य से बचाने के लिए महाराणा प्रताप ने प्रतिज्ञा की थी . कि जब तक तक मेवाड़ आजाद नही होगा तब तक वह महलों को छोड़कर जंगलों में निवास करेंगे वहीं अकबर ने कहा था की अगर महाराणा प्रताप मेरे सामने झुकते हैं तो आधे हिंदुस्तान के वारिस वो होंगे लेकिन बादशाहत अकबर की ही रहेगी

जवाब में महाराणा प्रताप ने कहा था की स्वादिष्ट भोजन को त्यागकर कंदमूल फलों से ही पेट भरूंगा लेकिन अकबर का अधिपत्य कभी स्वीकार नहीं करूंगा हल्दीघाटी में अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हुए युद्ध के दौरान इसी गुफा को प्रताप ने अपना शस्त्रागार बनाया था यह युद्ध आज भी पूरे विश्व के लिए एक मिसाल है इसका पता इसी बात से लगाया जा सकता है की इस युद्ध में अकबर के 85 हजार और महाराणा प्रताप के केवल 20 हजार सैनिक थे इसके बावजूद महाराणा प्रताप ने अपने पराक्रम से अकबर को इस युद्ध में धूल चटा दी महाराणा प्रताप का पराक्रम ऐसा था की उनकी म्रत्यु पर उनके पराक्रम को याद करके अकबर भी रो पड़ा .

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